नूराबाद मुरैना का इतिहास की जानकारी देखें
Tuesday 30 August 2022
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बेगम नूरजहां के नाम पर बसाया था नूराबाद, पुल पर बनी है शानदार मेहराबें
आगरा-मुंबई हाईवे पर मुरैना से ग्वालियर के बीच सांक नदी पर बना नूराबाद पुल मुगलकालीन इतिहास की बेहतरीन मिसाल है। मुगल बादशाह जहांगीर ने 16वीं शताब्दी में अपनी पत्नी नूरजहां के नाम पर इसका निर्माण कराया था। इस गांव का प्राचीन नाम सिरोहा हुआ करता था। उस समय यहां मुसाफिरों के रुकने के लिए सराय भी बनाई गई थीं।
-ग्वालियर से 24 किलोमीटर दूरी पर सांक नदी के किनारे पर नूराबाद स्थित है। वर्ष 1923 तक नूराबाद तहसील मुख्यालय हुआ करता था। नूराबाद का प्राचीन नाम सिहोरा था। वर्तमान में यहां 20 हजार से अधिक लोग निवास करते हैं।
- जहांगीर एवं नूरजहां के समय में इस गांव का नाम नूराबाद रखा गया। मुगल बादशाह जहांगीर ने इस गांव के पास सांक नदी पर पुल का निर्माण कराया था, जिसमें सात मेहराबें तैयार की गई थीं। ये मेहराबें लगभग छह मीटर ऊंची हैं और पांच मीटर चौड़ी हैं।
-पुल के दोनों तरफ चौड़ी चारदीवारी का निर्माण किया गया है। इन पर दो अष्टकोणीय गुंबदयुक्त छतरियां निर्मित हैं। दूसरी तरफ अष्टकोणीय दो मीनारें बनाई गई थीं। यह पुल मप्र शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
-जहांगीर के शासनकाल में यहां एक सराय का निर्माण कराया गया था। सराय एक गढ़ी के रूप में है, जिसमें बुर्ज बनी हैं तथा दो छतरीयुक्त दो विशालकाय द्वार निर्मित हैं। हालांकि समय के साथ यह अब जर्जर अवस्था में पहुंच गई है।
-सराय के द्वार पर फारसी में लिखा है कि इसकी मरम्मत सन् 1661 में औरंगजेब के शासनकाल में कराई गई थी। पर्यटकों को यह ऐतिहासिक स्थान बहुत भाता है। कुछ समय पहले यहां पर्यटन विकास निगम ने टूरिस्ट हट बनाने का प्रयास किया था।
- जहांगीर एवं नूरजहां के समय में इस गांव का नाम नूराबाद रखा गया। मुगल बादशाह जहांगीर ने इस गांव के पास सांक नदी पर पुल का निर्माण कराया था, जिसमें सात मेहराबें तैयार की गई थीं। ये मेहराबें लगभग छह मीटर ऊंची हैं और पांच मीटर चौड़ी हैं।
-पुल के दोनों तरफ चौड़ी चारदीवारी का निर्माण किया गया है। इन पर दो अष्टकोणीय गुंबदयुक्त छतरियां निर्मित हैं। दूसरी तरफ अष्टकोणीय दो मीनारें बनाई गई थीं। यह पुल मप्र शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
-जहांगीर के शासनकाल में यहां एक सराय का निर्माण कराया गया था। सराय एक गढ़ी के रूप में है, जिसमें बुर्ज बनी हैं तथा दो छतरीयुक्त दो विशालकाय द्वार निर्मित हैं। हालांकि समय के साथ यह अब जर्जर अवस्था में पहुंच गई है।
-सराय के द्वार पर फारसी में लिखा है कि इसकी मरम्मत सन् 1661 में औरंगजेब के शासनकाल में कराई गई थी। पर्यटकों को यह ऐतिहासिक स्थान बहुत भाता है। कुछ समय पहले यहां पर्यटन विकास निगम ने टूरिस्ट हट बनाने का प्रयास किया था।
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